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Published January 1, 2007 | Version v1
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यवन की परी

Description

यवन की परी नामक यह कविता-पुस्तिका जन विकल्प के प्रवेशांक के साथ वितरित की गई थी।



इस कविता-पुस्तिका की भूमिका रति सक्सेना लिखी थी, जो निम्नांकित है : 
 

उन्हें नफरत है खिड़कियों से

जनवरी अंक के साथ जारी कविता पुस्तिका

पेरिया परसिया, सेतारह या पेरि अथवा हिंदी में पुकारू नाम परी कहें, नाम कुछ भी हो, कहानी एक ही है। इंटरनेट पर एक संवाद आरंभ हुआ, संवाद करने वाली ने अपना नाम सेतारह बताया, जो शायद परशियन भाषा का नाम है। ई मेल के रूप में संवाद का आरंभ मेरी वेब पत्रिका की प्रशंसा से हुआ लेकिन कुछ दिनों बाद एक बेहद घबराया सा पत्र मिला, पत्र लेखिका ने अपनी एक मित्र के बारे में लिखा, जिसने अभी-अभी पागलखाने में आत्महत्या कर ली। उनका कसूर यह था कि उन्होंने एक ऐसे कवि से मुहब्बत की थी जिससे वे कभी मिलीं नहीं थीं। पत्र लेखिका ने बताया कि मरने से पहले उसकी मित्र ने पागलखाने की एक नर्स को कुछ पत्र दिए थे...जो कविता से लगते हैं।...ई मेल की सबसे बड़ी दुविधा यह होती है कि हम ना तो पत्र लिखने वाले के बारे में जान पाते हैं ना ही यह पता लगा पाते हैं कि यह किस देश का है (विशेष रूप से यदि पत्र याहू से आया हो)। लेकिन उक्त पत्र लेखिका से संवाद आरंभ होते ही मुझे यह अनुमान हो गया कि वह यवन देशों के किसी ऐसे समाज से ताल्लूक रखती है जहां औरतों के आजादी की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। बाद में इस बात की पुषिट भी हुई। उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं उन पत्रों को अपनी वेब पत्रिका 'कृत्या` में जगह दूं, जिससे लोगों को इस बारे में पता लग सके। लेकिन उनका सबसे बड़ा आग्रह यह था कि ना तो पत्र लेखिका का असली नाम दिया जाएगा, ना ही कवि का, नहीं तो कवि के परिवार को खतरा हो सकता है। जब कविता मिली तो मुझे लगा यह एक पुकार है वही पुकार जो कभी हमारे देश में मीरा की थी, वही जो हब्बा खातून की थी, और ना जाने कितनी स्त्रियों की, जो अपने दिमाग का मर्दों की तरह इस्तेमाल करने लगती है, जो मर्दों के लिए निर्धारित सीमा रेखा के भीतर घुसने की कोशिश करती है । उस कथित विक्षिप्त (विद्रोही!) महिला की यह 'कविता` पुरूष सत्ता की क्रूरताओं का बखान करते हुए स्‍त्री विमर्श का नया पाठ रचती है। मुझे लगा कि हमारे देश में पाठकों को भी इस कविता को पढ़ना चाहिए.. इसलिए अंग्रेजी में मिली इन कविताओं का मैं हिंदी में अनुवाद करने लगी, और अनुवाद की प्रक्रिया में ही मेरे भीतर आक्रोश शक्‍ल लेने लगा। बस यहीं पर मेरी कविता प्रक्रिया भी शुरू हो गई। यहीं पर मेरा 'परी` से संवाद स्थापित हुआ।

परी का 'एक पत्र पागलखाने से तथा मेरी कविता 'परी की मजार पर` वेब पत्रिका में प्रसारित होने के बाद कुछ साइबर पाठकों के पत्र आए जिसमें तरह-तरह की शंकाएं थीं जैसे कि यह कवयित्री मरी नहीं है या फिर कोई और है जो परी के नाम पर लिख रहा है। मैं बस एक बात जानती हूं कि यह कविता औरत की तकलीफ बयान करती है जो देह और मन के साथ दिमाग भी रखती है। कवयित्री का वास्तविक नाम चाहे जो हो।

- रति सक्सेना



 

Notes

मासिक पत्रिका के रूप में जन विकल्प का प्रकाशन पटना से जनवरी, 2007 से दिसंबर, 2007 तक हुआ। इस बीच इसके कुल 11 अंक प्रकाशित हुए। पत्रिका के संपादक प्रेमकुमार और प्रमोद रंजन थे।

Files

Janvikalp_Jan 2007_Yavan Ki Pari_Pramod Ranjan.pdf

Files (157.9 kB)

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