Published May 10, 2025 | Version v1
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शमशेर बहादुर सिंह के रचना संसार में युगबोध और शिल्प का समन्वय

  • 1. त्रिष्टुप चंसौलिया शोधार्थी, विषयः हिंदी ,जीवाजी विश्वविद्यालय,ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

Description

युगबोध और शिल्प का गहरा अंतः संबंध हुआ करता है। इस बात से हम सभी परिचित हैं, कि युगबोध ही साहित्य और कलाओं विशेषकर कविता का उत्स होती है। साहित्य और युगबोध एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, इसलिए युगबोध साहित्य का परिणाम भी होता है। कोई भी साहित्यिक रचना समाज में ही पल्लवित एवं पुष्पित होती है। समाज, संस्कृति और परिवेश से प्राप्त कच्चे माल की भाँति प्राप्त संपदा को एक सर्जक रचनाकार अपनी रचनात्मक प्रतिभा से आकृ ति प्रदान कर साहित्य के कोष की वृद्धि करने में अपना योगदान देता है। किसी रचनाकार की सृजन शक्ति, मानो जीवन का बीजभाव होती है, जो सृजनात्मकता की प्रक्रिया के कारण फलित होती है।

समकालीन कविता जीवन के यथार्थ का उद्घाटन करती है। इस युग की कविता की भाषा आम बोलचाल और जनजीवन की भाषा है। अपने समय की सचाई को अभिव्यक्ति प्रदान करने वाली भाषा में कहीं तल्खी और सपाट बयानी है, तो कहीं लोक मुहावरों की रसमयता भी मौजूद है। समकालीन कविता अपने कलात्मक सौंदर्य और शिल्प को कायम रखने में इस दृष्टि से कामयाब कही जा सकती है।

विचार और युगबोध, बिंब और प्रतिबिंब, अनुभव और अनुभूति लक्षण और व्यंजना के साथ मिलकर अपने युग, परिवेश और समय का चित्रांकन कर अभिव्यक्ति के विविध आयाम रचने में सक्षम है। युगबोधत्मक अनुभूति भी जब अभिव्यक्ति के धरातल पर उतरती है, तो भाषा की कारीगरी स्वयं कविता की अनुकूल शिल्पगढ़ कर चमत्कार उत्पन्न कर देती है। सन् 1950 से 1970 तक इन दो दशकों की कविता की यात्रा को साठोत्तरी कविता की यात्रा भी कह सकते हैं। इस दौर में कविता का स्वरूप कैसा रहा, उसका शिल्प कैसा रहा, इसका आंकलन समकालीन हिंदी कविता में युगबोध का स्वरूप के विश्लेषण के लिये आवश्यक प्रतीत होता है।

मुख्यबिन्दुः युगबोध, साहित्यिक, समाज, रचनात्मक, योगदान, सृजनात्मकता आदि ।

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2456-6713

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Journal article: 2456-6713 (EISSN)

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2025-05-05
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