Discussion of Various Styles of Dev Vastu (देव वास्तु के विविध शैलियों का विमर्श)
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English Abstract:Vastu encompasses everything that exists in the universe. It encompasses the entire globe and the solar system, making architecture a vast and broad subject from this perspective. Indian architecture is not only ancient but also extensive. The original texts considered authoritative in this field are known as the Vedas. Within the Vedas, there is a sub-Veda called Sthapatya Veda, which specifically deals with architecture. This indicates that the art of architecture has been developed in India since ancient times, based on these scriptures. The Matsya Purana also confirms this.
Among the 18 Acharyas (teachers) of Vastu Shastra, Vishwakarma and Maya are well-known names. Vishwakarma is considered the divine founder, while Maya is associated with the asuras (demons). Temple architecture in India has developed along regional or geographical lines. In the north, the Nagara style of architecture emerged, in the south, the Dravida style, and between the two, the Vesara style developed.
Hindi Abstract: सृष्टि में जितनी भी वस्तु है सभी वास्तु में समाहित है। समस्त भूमंडल तथा सौरमंडल वास्तुकला के प्रतिपाद्य विषय है, इस दृष्टि से वास्तुकला अत्यंत व्यापक एवं विराट है। भारतीय स्थापत्य जितना व्यापक है उतना ही प्राचीन। यहां के आदि ग्रंथ वेद माने जाते हैं।अथर्ववेद में स्थापत्य वेद नामक एक उपवेद भी माना गया है। इससे विदित होता है कि इस देश में अति प्राचीन काल से ही शास्त्र अनुकूल पद्धति पर स्थापत्य कला का विकास हो चुका था। इसकी पुष्टि मत्स्य पुराण में भी होती है। वास्तु शास्त्र के 18 आचार्यों में विश्वकर्मा तथा मय का नाम सर्वविदित है। विश्वकर्मा देवताओं के तथा मय असुरों के स्थापति माने जाते हैं। भारत के मंदिर स्थापत्य का विकास क्षेत्रीय अथवा भौगोलिक आधार पर हुआ है। उत्तर में नागर शैली दक्षिण में द्रविण और दोनों के बीच बेसर शैली का विकास हुआ।
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