विरासत का संरक्षणः एक चिन्तन
Creators
- 1. प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (सामाजिक विज्ञान 'इतिहास') आर्मी पब्लिक स्कूल, न्यू कैन्ट प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
Description
पिता की आज्ञानुसार राजपाट त्याग कर रामचन्द्र का चैदह वर्षों का वनवास’ तथा ‘कलियुगी पुत्र द्वारा सम्पŸिा के लिए
पिता की हत्या‘, भारतीय संस्कृति के मूल्यों के हनन की यह व्यथा-कथा अपने आप मंे गंभीर चिन्तन का विषय है। आधुनिक
युग विज्ञान एवं तकनीकी का युग है। दुनिया सिमट कर इतनी छोटी हो गयी है कि आज विभिन्न संस्कृतियां एक दूसरे
पर अपना प्रभाव डाल रही हैं। पाष्चात्य संस्कृति ने भारतीय युवाओं के मस्तिष्क, रहन-सहन और सोचने-विचारने की
क्षमता को इतना प्रभावित कर दिया है कि नैतिक, सामाजिक, धार्मिक आदि बहुमुल्य मूल्यों से युक्त भारतीय आज मौद्रिक
मूल्यों की झूठी चमक के सामने अपने हीरे-जवाहरातों से युक्त संस्कृति रूपी खज़ाने को खोता जा रहा है। जिस देष की
संस्कृति को सभ्यता अपनी दासी बना लेती है, वहाँ की संस्कृति की अकाल मृत्यु हो जाया करती है। अतः आवष्यकता है
अपनी धरती पर एक ऐसा पौधा लगाने की जिसमें विज्ञान की सहायता से ‘सत्यम‘ रूपी पुष्प खिल सकें, जिसकी ‘षिवम‘
रूपी महक मानव में कल्याणकारी भावना विकसित कर सके, तथा जिससे सुसज्जित विष्व में हम ‘सुन्दरम्‘ का साक्षात्
दर्षन कर सके। आज जिन आधुनिक संचार माध्यमों के मायाजाल ने हमारे युवाओं को दृगभ्रमित कर रखा है वहीं
संचार-साधन संस्कृति की रक्षा का कार्य-भार संभालें और एक ऐसे पर्यावरण को निर्मित करें जिसमें हम अपनी भारतीय
प्राचीन अक्षुण्य संस्कृति के वास्तविक स्वरूप को पहचान सकें। इसके अतिरिक्त हमें स्वयं का उदाहरण प्रस्तुत करना होगा
ताकि अनुकरण द्वारा भावी पीढ़ी में वे समस्त मूल्य विकसित हो सकें जो उनमें देवत्व का दर्षन करा सकें तभी भारतीय
संस्कृति पुनः जागृत हो सकेगी और भारतीय युवा स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर सकेगा। नई षिक्षा नीति 2020 इसमें
अपना महत्वपूर्ण योगदान देगी, इसके प्रारूप को देखते हुए यह आषा की जा सकती है।
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