Published August 30, 2025 | Version v1
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श्रीमद्भगवद्गीता में निहित अधिगम की प्रमुख पद्धतियों का विश्लेषणात्मक अध्ययन

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भारतीय धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म की श्रृंखला में श्रीमद्भगवद्गीता का महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी प्रासंगिकता वर्तमान से लेकर आने वाले युग-युगों तक यथार्थ रूप से बनी रहेगी। श्रीमद्भगवद्गीता जीवन के प्रत्येक पहलु पर मार्गदर्शन करने के साथ-साथ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अधिगम की श्रेष्ठ अवधारणा को पुष्ट करती है।

अधिगम या सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया निहित होती है। सामान्यतया मनुष्य जीवन की समस्याओं में उलझकर किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाता है ऐसी स्थिति में कर्णीय-अकर्णीय  कर्म का बोध नहीं रहता है। मनुष्य उन समस्याओं से लड़ने की वजह समस्याओं से भागने का प्रयत्न अथवा पलायन करने लगता है। ऐसी स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण गीता उपदेश के माध्यम से अर्जुन को कर्त्तव्य पथ पर अभय एवं अनासक्त भाव से कर्म करना सिखाते हैं। इस प्रकार गीता विपरीत परिस्थितियों एवं समस्याओं में भय से अभय एवं राग-द्वेष से मुक्त होकर स्वधर्मानुसार कर्म का अधिगम कराती है।

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