वैदिक कालीन एवं आधुनिक शिक्षा व्यवस्था के स्वरूपों का तुलनात्मक अध्ययन
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सारांश: हमारे भारत की शिक्षा एवं शिक्षण व्यवस्था सर्व प्राचीन मानी जाती है। इसका प्रारंभ ऋग्वेद से हुआ था, जिसका उद्देश्य तत्व ज्ञान तथा मोक्ष प्राप्ति था। तत्पश्चात यथा-यथा काल परिवर्तित हुए। शिक्षण के स्वरूप एवं शिक्षण व्यवस्था भी परिवर्तित होती चली गई। अतः प्राचीन भारतीय शैक्षिक व्यवस्था का क्रमिक विकास स्वाभाविक तौर पर हुआ। तत्पश्चात स्वाभाविक ढंग से माना जाता है कि इसमें सर्वप्रथम वैदिक काल से शिक्षा प्रारंभ हुई तत्पश्चात बौद्ध कालीन, मुस्लिम कालीन व स्वतंत्रता के पश्चात काल से होती हुई आधुनिक काल तक चली आ रही है। प्रत्येक काल में शैक्षिक व्यवस्था स्वाभाविक रूप से क्रमानुसार परिवर्तित होकर नया रूप धारण कर रही है। जैसे वैदिक कालीन शिक्षा का प्रमुख तत्व गुरुकुल व्यवस्था थी, जबकि आधुनिक कालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यवहारिक ज्ञान है। वर्तमान में इस ज्ञान को विद्यालयों व विश्वविद्यालय में प्राप्त किया जा रहा है। इस प्रकार 21वीं पीढ़ी की आवश्यकताओं के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिए तरीकों को आधुनिक रूप प्रदान करने के लिए स्कूल एवं विश्वविद्यालय निरंतर प्रयासरत है। इन्हीं प्रयासों के परिणाम स्वरुप छात्राओं के कौशल को इस प्रकार विकसित किया जा रहा है कि वह आत्मनिर्भर व महत्वाकांक्षी बन सकें।
प्रस्तुत शोध पत्र में दार्शनिक विधि का प्रयोग कर माध्यमिक शिक्षा स्तर पर वैदिक कालीन शिक्षा एवं आधुनिक शिक्षा व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन कर आए परिवर्तन की विस्तृत व्याख्या की गई है।
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2025-07-20Published