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श्री अरविंद का शिक्षा में योगदान

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श्री अरविंद का जन्म १५ अगस्त १८७२ को कलकत्ता में हुआ। उनके पिता का नाम  श्री कृष्णधन घोष और माता का नाम श्रीमती स्वरणमला देवी था। पिता ने  इंग्लांड से मेडिकल की पढ़ाई की थी और सर्जन थे। १८७९ में डॉक्टर घोष ने श्री अरविंद को पढ़ाई की लिए iइंगलेंड भेज दिया। श्री अरविंद को भारतीय प्रभाव से दूर रखा गया। क्योंकि भारतीय सभ्यता अंग्रेजों के अधीन रूढ़िवादिता से ग्रस्त थी। यद्यपि श्री अरविंद भारतीय परंपरों से दूर रहे ; उन्होंने देश की आज़ादी तथा विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय सभ्यता में प्रखर योगदान किया। उन्होंने ICS की परीक्षा भी दी , परंतु स्वयं  घुड़सवारी में न पास कर पाने की वजह से ICS में नहीं गए क्योंकि वह अंग्रेजों के निर्देशों पार काम नहीं करना चाहते थे। श्री अरविंद के जीवन में अलग अलग पड़ाव आए। और वह उन क्षेत्रों में अपना योगदान देते गए। सर्वप्रथम वह साहित्य के प्रति आकर्षित रहे और बहुत सी कविताओं के माध्यम से उनके विचार प्रकट होते हैं जैसे ‘लाइंज़ टू आयरर्लेंड’, ‘कर्मयोगिन’, जिनमें देश भक्ति तथा भारतीयता के भाव उजागर होते हैं। महाराजा बडोदा के सानिध्य में उन्होंने भारतीय भाषाओं, इतिहास, सभ्यता व धर्म का ज्ञान प्राप्त किया। भारतीय दर्शन का भी उन्होंने अध्ययन किया। उनका जीवन साहित्यिक, राष्ट्रवादिता, स्वाधीनता तथा अध्यात्म के पड़ावों से गुजरा। इसी बीच उनका शिक्षा में योगदान भुलाया नहीं जा सकता। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति को यदि बचाना है, तो भारत में सही शिक्षा, जो की मूल्य आधारित हो आवश्यक है।  सर्वांगीण  शिक्षा में पाँच मूल्यों को उन्होंने अनिवार्य बताया: शारीरिक शिक्षा, मूल/ प्राणिक शिक्षा, मानसिक शिक्षा, बौधिक शिक्षा तथा आध्यात्मिक शिक्षा। यह शोध श्री अरविंद के शिक्षा में योगदान तथा उनके द्वारा सुझाए  शिक्षा के इन पाँच बिंदाओं पर गहरायी से उल्लेख करेगा।  बहुत हद तक हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२०, श्री अरविंद के विचारों को समावेश करती दिखती है।

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