वीर सावरकर के चिंतन में सांस्कृतिक पुनरूत्थानवाद
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सारांश:-
पाश्चात्य प्रभाव के कारण 19 वीं सदी के आरंभ में भारत में सामाजिक तथा धार्मिक सुधार प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। यह मुख्य रूप से भारतीय जनता की उदीयमान राष्ट्रीय चेतना और पाश्चात्य उदावादी विचारों के प्रसार का परिणाम थी। इसी के कारण भारत में सामाजिक और धार्मिक नवनिर्माण के कार्यक्रम को अपनाया गया। सामाजिक क्षेत्र में जाति सुधार या जाति प्रथा की समपत्ति, स्त्री के लिए समानाधिकार, बाल विवाह का उन्मूलन, विधवा विवाह का समर्थन, सामाजिक और कानूनी असमानता का विरोध आदि सामाजिक कुरीतियों के प्रश्न पर आंदोलन हुए। धार्मिक क्षेत्र में जो आंदोलन हुए उन्होंने धार्मिक अंधविश्वास और मूर्तिपूजा, बहुदेवतावाद, वंशानुगत पुरोहिती आदि का विरोध किया। ये सामाजिक एकता सुधार आंदोलन मुख्य रूप से व्यैक्तिव स्वतंत्रता, सामाजिक और सिद्धांतों से जुडे हुए थे।
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