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Published November 30, 2023 | Version v4
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भारत में साम्प्रदायिकता और लोहिया के विचार की प्रासंगिकता

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प्रस्तावणा:

यद्यपि आज हमारे जीवन में धर्म का अधिक महत्त्व नहीं है] परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि धर्म ने विश्व इतिहास के निर्माण में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। धर्म के मुख्यतः दो पहलू होते हैं— आन्तरिक एवं बाह्य। धर्म का आन्तरिक पहलू समन्वयवादी और मानवतावादी है। यह आदर्श और शाश्वत होता है। जीवन के समस्त आदर्शों और संस्कृतियों के नैतिक मूल्य इसमें समाहित रहते है। धर्म के इस पहलू के महत्त्व को स्वीकार करते हुए डॉ. लोहिया ने कहा है कि "मुझे ऐसा लगता है कि धर्म] सम्प्रदाय के अर्थ में मतलब हिन्दू धर्म] इस्लाम धर्म] ईसाई धर्म और फिर हिन्दू धर्म के अन्दर भी वैष्णव धर्म] शैव धर्म वगैरह जो कुछ भी हो] उसका अर्थ सबके लिए व्यापक होना चाहिए, और वह है दरिद्रनारायणवाला जो सब लोगों के हित का हो।"

(1½ धर्म का बाह्य पहलू एक धर्म-विशेष के रीति- रिवाज) आचार-विचार] पूजा के ढंग तथा उसके बाह्य आचरण के अन्य ढंगों से सम्बन्धित होता है। धर्म का यह पहलू आडम्बरयुक्त] पृथक्तावादी तथा संकुचित होता है। इस पहलू से ही विभिन्न सम्प्रदायों का उदय हुआ है। सम्प्रदाय साम्प्रदायिकता को जन्म देता है। साम्प्रदायिकता उस सीमा तक क्षम्य है जहाँ तक कि वह अपने लोगों की सांस्कृतिक उन्नति में सहायक होती है। साम्प्रदायिकता वहीं दूषित हो जाती है ] जहाँ पर वह अपने लोगों के लिए दूसरों की अपेक्षा विशेषाधिकार चाहने लगती है। धर्म के बाह्य पहलू ने बहुधा दूषित साम्प्रदायिकता को ही जन्म दिया है, जो समाज में विघटन] ईर्ष्या]घृणा और पतन का कारण बनती है। सी. सी. काटन ने उचित ही कहा है] "Where true religion has prevented one crime, false religion has afforded a pretext for a thousand."

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