र ंग एवं रसाभिव्यक्ति
Creators
- 1. असिस्टेन्ट प ्रोफेसर, डिपार्टमेन्ट आॅफ ड्राॅइंग एवं प ेंटिंग, फ ैकल्टी आॅफ आर्टस दयाल बाग एजूकेशनल इन्स्टीट्यूट,दयालबाग, आगरा
Description
मानव जीवन का उद्देश्य क्रियाशीलता अथवा निर्मा ण में निहित है। इससे रहित जीवन श ून्य से अधिक नही ं होता। एक कलाकृति
में मानव अपने अनुभवों का े निश्चित चित्र तत्वों एवं सौन्दर्य सिद्धान्तों क े आधार पर ही अभिव्यक्ति करता है। इस रूप सजृन
की प्रक्रिया का े कला की संज्ञा प्रदान की जाती ह ै। हृदय अनुभूति क े परिणाम स्वरूप ही कला की भाषा भावों स े परिपूर्ण है।
भाव का अर्थ हा ेता ह ै, भावना, उद्वेग, आव ेग, संव ेग, उन्मेष, इच्छा, प ्रकृति आ ैर व्यंग इत्यादि का अ ुनभव। यह अनुभव हमारी
इन्द्रियों क े द्वारा हमारे आन्तरिक मन मस्तिष्क में उतर कर हमारी आत्मा को प ्रभावित करता ह ै। यह भाव सुख एवं दुख के रूप
में हमारे अन्तर्मन में प ्रवाहित होता ह ै एवं विभिन्न रूपों में परिस्थितिया ें वश प ्रकट होते ह ै। इन्ही भावों का े भारतीय प ्राचीन शास्त्रों
में रस की कोटि में विभाजित किया गया है। यह रस कलाकार की कृतियों में विभिन्न रूपों में एव ं रंगा ें की मनोहारी उपस्थिति
से प ्रकट होते है जो दर्श क को आनन्द विभा ेर करते है।
हिन्दू दर्श न के अनुसार ब ्रह्म, जिसस े हमारी आत्मा को ब ्रह्मानन्द रस जो भावनाओं क े माध्यम से प ्राप्त होता ह ै तथा जो मनुष्य
का े एक अद्भ ुत आनन्द प्रदान करता है।1 इसी प्रकार एक उत्तम चित्र अथवा अभिनय मनुष्य का े सन्तोषजनक आनन्द से भर
देते ह ै ं क्या ेंकि वह सम भावों की अभिव्यक्ति करते ह ैं।
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