भारतीय ज्ञान परम्परा की राष्ट्रीय शिक्षा नीशत (2020) में प्रासंशिकता
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स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी हम अपिे दाशषनिक , अध्यात्ममक एवं सांस्कृनतक ज्ञाि, सामात्जक घनिष्ठता तथा समन्वय
से दूर हैं | भारतोदय हेतु हमें अपिे ज्ञाि को जाििा , समझिा एवं फैलािा परम आवश्यक हैं | आददकाल से ही भारत देश
अपिे धमष-ग्रंथों , संस्कृनत एवं बहुभार्ीय गुण के ललए प्रलसद्ध रहा हैं | ये तीिों गुण केवल शब्द मात्र िहीं अवपतु, प्रमयेक
भारतीय के भाव हैं जो उसे अपिे देश की संस्कृनत से ववरासत में लमले हैं | भारतीय लशक्षा व्यवस्था का स्वरुप व्यवहाररक
एवं दैिंददिी जीवि को सुचारु रूप से संचाललत करिे में सहायक रहा है| इसे यह ध्यातव्य होता हैं कक राष्रीय लशक्षा
िीनत केवल भारत के गौरवशाली इनतहास को ही हमारी लशक्षा का अंग िहीं बिा रही हैं बत्ल्क भूतकाल में जन्मे सभी
महाि व्यत्ततमव जैसे- चरक , रामािुजम , सुश्रुत, आयषभट्ट , बुद्ध , रैदास , वाल्मीकक, बबत्स्मलाह खां, वराहलमदहर , महाममा
गांधी , भगत लसहं , गागी , अपाला , घोर्ा , साववत्री , रमाबाई, चााँदबीबी , रत्जया सुल्ताि, मदर टेरेसा , एिी बेसटें आदद के ववचारों
एवं कायों को वतषमाि की प्रासंगगकता के अिुरूप लशक्षा के सभी स्तरों में शालमल करिे का प्रयास कर रही हैं त्जसे एक
स्वस्थ भारतवर्ष एवं संस्कृनत को पुिः स्तत्भभत ककया जा सके | यह लशक्षा िीनत ऐसी कल्पिा करती हैं कक , बालक अपिे
ज्ञाि , व्यवहार , बौद्गधक कौशल से स्थायी ववकास समृद्ध जीवियापि एवं वैत्श्वक कल्याण के प्रनत प्रनतबद्ध बि सके
तभी उससे एक वैत्श्वक िागररक मािा जा सकता हैं | इस कलपिा को वास्तववक रूप प्रदाि करिे के ललए सिाति
ज्ञाि , परभपरा , प्रथा , ववचार एवं मूल्यों को िवचाररत ज्ञाि के साथ एकीकृत करिा होगा िा कक एक अलग ववर्य के रूप
में स्थावपत करके ज्ञाि प्रदाि ककया जाये तभी बालक का ववकास सिातिी ज्ञाि अिुरूप संभव हैं | इस लेख में शोधाथी
द्वारा राष्रीय लशक्षा िीनत में भारतीय ज्ञाि परभपरा की प्रासंगगकता का ववश्लेर्ण ककया गया हैं |
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