निर्गुण राम भक्ति: आंतरिक उपासना और सामाजिक समानता की दिशा में एक यात्रा
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Description
यह शोधपत्र मध्यकालीन भारत के भक्ति आंदोलन में निर्गुण राम की अवधारणा और उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक प्रासंगिकता की पड़ताल करता है। यह विश्लेषण करता है कि, कैसे निर्गुण भक्तिधारा ने पारंपरिक धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक पदानुक्रम को चुनौती देते हुए आध्यात्मिकता के लिए एक वैकल्पिक, समावेशी और लोकतांत्रिक मार्ग प्रस्तुत किया। इस शोध का केंद्रबिंदु कबीर, रैदास और दादू दयाल जैसे प्रमुख निर्गुण कवियों के कार्य हैं, जिन्होंने निराकार, सर्वव्यापी ईश्वर पर ज़ोर दिया। यह पत्र दर्शाता है कि, उनके द्वारा प्रतिपादित निर्गुण राम की अवधारणा सगुण राम की मूर्ति-पूजा और उससे जुड़े जटिल कर्मकांडों के प्रभुत्व को चुनौती देती है। इस विचारधारा ने समाज के हाशिये पर रहने वाले वर्गों को आध्यात्मिकता से जोड़ा और उन्हें आत्मिक सशक्तिकरण का अवसर प्रदान किया। यह शोधपत्र निर्गुण राम भक्ति के स्थायी महत्त्व को उजागर करता है, जो न केवल सामाजिक समानता को बढ़ावा देता है बल्कि व्यक्तिगत आध्यात्मिक सुख प्राप्ति के लिए एक सरल और सुलभ मार्ग भी प्रस्तुत करता है। इस पत्र का मूल बिंदु है कि, इस भक्तिधारा ने पारंपरिक धार्मिक ढाँचों से बहिष्कृत लोगों के लिए आध्यात्मिक द्वार खोले और एक व्यापक, समावेशी आध्यात्मिकता का मार्ग प्रशस्त किया।
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        Nirgun Ram Bhakti by Manish Patel.pdf
        
      
    
    
      
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